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आज मगध यूनिवर्सिटी में सीनेट की बैठक के दौरान जो कुछ हुआ वो बेहद ही निराशाजनक और पुलिस बिरादरी की एक शर्मनाक हरकत ही कही जा सकती है।  अब वक्त आ गया है की हम पानी नसों को पुनः टटोलें और जरा विचार करें की क्या ये वही “प्रजातंत्र” ही है या कुछ और है जिसके नाम पे इंसानो के साथ दिन-दहाड़े  नाइंसाफी की जा रही है? 80 से ज्यादा छात्र एवं हाल ही में मान्यता रद्द हुए महाविद्यालयों की प्रतिनिधियों से अगर पूछें तो मुझे नहीं लगता की उन्हें अब ज़िन्दगी में ये भरोसा होगा की बिहार की पुलिस कोई अच्छा काम भी कर सकती है।  देर से आने और नेताओं के साथ मिलके गुल खिलाने  के लिए बदनाम बिहार पुलिस ने आज प्रदर्शन कर रहे छात्रों और कुछ शिक्षकों पे जमके लाठी बरसाई और इस हद तक पीटा की कुछ प्राण तो ज़िन्दगी और मौत के बिच झूल रहे हैं।  अब पुलिस तो छात्रों पे एफ आई आर कर देगी पर क्या उन अत्याचारी पुलिस वालों पे भी मुकदमा दर्ज होगा जिन्होंने जनतंत्र में प्रदर्शन कर रहे लोगों को दौरा दौरा कर पीटा? कुछ छात्र तो ऐसे भी थे जिन्हें इन बेशर्म पुलिस वालों ने (क्या कुलपति के इशारे पे?) विभागों से गलियां देते हुए निकाला और सडकों पे लाके पिटा।  
समझ में तो ये भी नहीं आता की इस ठाकुर प्रसाद के कैलेंडर पे चलने वाली यूनिवर्सिटी के कुलपति, जिन्होंने सरस्वती पूजा के नाम पे मिलने वाले नाम मात्रा की चंदे को भी बंद करवा दिया, को क्या सूझी की इन्होने विश्विद्यालय की परिसर को भारत पाक सिमा की तरह छावनी में क्यों तब्दील करवा दिया? डा. क़मर एहसान जी, जोकि तत्कालीन कुलपति हैं मगध यूनिवर्सिटी के, अभी तक छात्रों को बेरहमी से पिटे जाने पे कोई प्रतिक्रिया  नहीं दी है। परिसर में इतना कुछ हो जाये और कुलपति एक सहानुभूति भरा सन्देश भी जारी न करे तो पता चलता है कितनी चिंता है उसे अपने छात्रों की।  

आश्चर्य इस बात का भी काम नहीं की वही मीडिया जो पुरे देश को अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देशद्रोही छात्रों के रवैये को तो बढ़ा चढ़ा कर गुणगान सुनाती है आज पुलिस एवं प्रशाषन के इस दमनकारी कदम के बाद भी जाने कहाँ छुपके बैठी है।  क्या ये घटना बिहार में हुई इसीलिए ‘फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन’ के मसीहा रवीश कुमार जी भी इस घटना तो दरकिनार कर देंगे? क्या ये सही मायने में लोकतंत्र की हत्या है इसीलिए भारत की दोगली मीडिया इसे नहीं दिखाएगी? क्या इस घटना में टी आर पी नहीं है इसीलिए अर्नब गोस्वामी जी भी इसपे  ‘डिबेट’ नहीं रखेंगे? या क्यूंकि इस बार देश के छात्रों ने देशद्रोह न करके एक जायज मांग उठायी इसीलिए ये भारतीय मीडिया की देशद्रोही नीतियों को सूट नहीं कर रहा? सवाल तो बहुत है साहब। 
इन छात्रों के शरीर पे बने डंडों की निशान ये बता रहे हैं की नितीश जी की बिहार पुलिस को निहथों और बेगुनाहों पर अपनी लाठी छोड़ने में कितना आनंद आता है।  वर्ना इनके निक्कमे और नाकारापन की तो दुनिया गवाह है।  हाथ में तिरंगा पकड़े छात्रों पे भी जब पुलिस की लाठियां बरसने लगे तो आप समझ लीजिये इनकी कर्त्तव्य निष्ठा।  हत्या और लूट के बाद बड़ा सा तोंद लिए जाँच को पहुंची वो बिहार पुलिस की छवि भी सिंघम और दबंग बने इन पुलिस कर्मियों को देख कर वाह  वाह  कर रही होगी! 

उस यूनिवर्सिटी की क्या हालत होगी जहाँ एम ए की डिग्री छात्रों को दो की जगह तीन साल में दी जा रही हो और प्रशाषन के नाम पे लोगों की दिए जा रहे हों मुफ्त में बदन पे चोटों के निशान! क़मर साहब, अभी तो ये शुरुआत है।  बस उस दिन की सोचिये जिस दिन छात्र आपसे अपने उस बर्बाद हुए साल का हिसाब मांगेंगे और आपके पास हाथ जोड़के माफ़ी मांगने के अलावा और कुछ न होगा।  छात्रों के आंदोलन यूनिवर्सिटी परिसर में होते ही रहेंगे।  आप चाह कर भी यहाँ तानाशाह वाले रवैये को लागु नहीं कर सकते।  आप उस मानसिकता से बाहर आ जाएँ की आप राजा हैं और छात्र आपकी प्रजा। जिस दिन आपको छात्रों से भेंट होगी, आप शायद उसके बाद यूनिवर्सिटी से अवकाश ले लेंगे।  

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